Sunday, May 4, 2008

Hum banenge Engineer

Hi all !!
The following is an award winning poem from the SFIT magazine , Hindi Section . (Not to mention that St. Francis Institute of Technology is a place where you can seldom hear a full non-Hinglish/non-English sentence; poor Hindi Editors emotionally black-mail their friends to write an article for their section. Admist all these odds , my poem titled Hum Banenge Engineer topped in the Hindi section..)

Glossary : Iris is the name of the Cultural festival of my college. For those of you who are in an Engineering college in Mumbai , you must go for it .. And all the rock fans , there's a lot for you - rock competitions, rock shows and a rocking crowd ..

Hum Banenge Engineer

मम्मी ने इंजीनियरिंग की रत लगाई ,
पापा ने पैसों से सीट दिलाई,
मुझे भी करनी थी खूब पढ़ाई ,
तभी मैं यहाँ धमक के आई ।

मार्क्स मिलना इतना आसान कभी ना था ,
५ मार्क्स के लिए केवल ९५% attendance ,
वर्कशॉप मेरा प्रिय विषय कभी न था ,
Redo मिले in abundance.

द्रविंग हॉल में छे महीने बीते ,
छाप छाप कर हाथ हमारे टूटे,
शाम तक बैठे कुछ ही महीनो में ,
हम भूखे रहना भी सीखे ।

IRIS ले आया ख़ुशी की किरण ,
आजाद पंछी की तरह बिताया हर क्षण ।
रात दिन महनत  करते कॉलेज के नौजवान ,
IRIS कोर कमिटी को मेरा सलाम ।

आज़ादी बस पल भर हीटी थी ,
परीक्षा की तारिख अब सर पर थी ।
हर पेपर के बाद रत लगाना ,
अगले पेपर में कुछ कर दिखाना ।

खैर वोह बुरी आदत भी अब छूट गयी है ,
क्लास टेस्ट की पढाई से लिंक टूट गयी है  ।
लेक्चर में भी एकाग्रता से आज कल ,
हम अंतर आत्मा को खोजते हैं पल पल ।

यहाँ प्यार व्यार तो होता नहीं ,
गुलाब मिलना ही बहुत बड़ी बात है  ।
हम तो वहां भी फ़ैल हुए ,
अब तक की गिनती दो को है छूए ।

fफिर aayaआया paपापी pपेट kaका sawaaसवाल ,
नौकरी की भाग दौड़ में हुआ बुरा हाल ,
ल ही तो यहाँ आये थे ,
चार साल अब बीत भी गए ।

कहाँ गए मालूम नहीं ,
क्या किया पता नहीं ।
मगर ज़ेरोक्स वाला हमें,
आज भी दुवाएं देता है ।

दोस्त , दुश्मन शिक्षक , वायवा ,
सब की याद आयेगी ।
मगर जीना इसी का नाम है
ज़िन्दगी यूँ ही चलती जाएगी ।